बासुकीनाथ धाम भगवान शिव का मंदिर की कहानी
आज से लगभग २०० साल पहले बासुकीनाथ मंदिर का स्थापना हुई थी। यहाँ की कहानी बहुत ही अनसुलजी है. यहाँ साल में ३० दिनों की श्रावण मास में बहुत बड़ा मेला लगता है. पुरे भारत देश से यहाँ धार्मिक उत्सव के लिए पर्यटकों का करोड़ो में भीड़ लगता है. पूरा बासुकीनाथ नगरी गेरुए रंग से पट जाता है. सभी गेरुए पर्यटक कन्धों में कांवर लिए कांवर को लचकाते हुए चलते हैं. कांवर के दोनों बगल डब्बे में गंगा जल लिए बाबा बासुकीनाथ के ऊपर जल चढ़ाने के लिए आते हैं. यह दृश्य बहुत ही मनमोहक लगता है. नजारा ऐसा दीखता है मानो पुरे बासुकीनाथ एरिया में गेरुए रंग बिखरे पड़े हैं.
यहाँ बासुकीनाथ मंदिर में भगवान शिव का मंदिर है। बासुकी नाम के व्यक्ति के नाम से पड़ा , कथा किवदंती के अनुसार एक दिन बासुकी अपनी जानवरों को दारुक वन में चरा रहा था , एक गाय अपने थन से दूध को एक जगह गिरा रही थी। ऐसे ही वो गाय रोज थन का दुध दारुक वन के उसी स्थान पर रोज दुध गिरा देती बासुकी को जब यह पता चला की यह गाय दूध को इसी स्थान पर रोज गिरा देती है। तो उसे यह जानकार बहुत ताज्जुब हुआ। एक दिन बासुकी घर पर नींद में सो रहा था। तभी उसे शंकर जी सपने में आये और उससे कहा देखो बासुकी जहाँ गाय दुध गिराती है। उस स्थान पर में निवास करता हूँ। दूसरे दिन बासुकी दारुक वन में उसी पेड़ के निचे गया और पेड़ के पास खुदाई किया। उसने देखा की वहां एक शिव लिंग दफना हुआ है उसने उसी जगह पर शिव लिंग की स्थापना कर उसकी पूजा पाठ में लग गया उसी दिन से उस स्थान में लोग पूजा पाठ करने लगे और इस तरह यह स्थान काफी प्रकाश में आ गया। बासुकी नामक इस व्यक्ति के नाम से ही इस स्थान का नाम बासुकीनाथ धाम हो गया। और तब से इस स्थान पर यहाँ करोड़ो पर्यटक श्रावण मास में शिव जी को गंगा जल अर्पित करने के लिए आते रहते हैं।
बासुकीनाथ धाम से माँ गंगा घाट से काँवरिया अपने काँवर में गंगा जल भर कर एक सौ पांच किलोमीटर पैदल चलकर , बोलबम बोलबम बोलते हुए बासुकीनाथ जल को शिव को अर्पित करने के लिए आते हैं। हरेक श्रद्धालु किसी न किसी मनोकामना लिए शिव को गंगा जल अर्पित करने के लिए आते हैं।
श्रावण मॉस में करोड़ो श्रद्धालु देश के कोने कोने से बासुकीनाथ में जल चढाने के लिए आते रहते हैं।
बासुकीनाथ धाम से दुमका देवघर पथ में कई पर्यटक स्थल देखने को मिलेंगे। त्रिकुटी पर्वत पर्यटकों के लिए ख़ास पर्यटन गंतव्य हैं। पर्यटक त्रिकूट पर्वत में दृश्य का आनंद लेते हैं. आप वहां रोपवे का आनंद ले सकते हैं. त्रिकूट से आगे देवघर में शिव का प्राचीन मंदिर है। वहां भी सालों भर श्रद्धालु का ताँता लगा रहता हैं. देवघर में विश्वप्रसिद्ध श्रावण मेला लगता हैं. श्रावण मॉस में वहां भी श्रद्धालु काँवर लेके शिव को गंगा जल अर्पित करने के लिए आते रहते हैं।
यहाँ बासुकीनाथ मंदिर में भगवान शिव का मंदिर है। बासुकी नाम के व्यक्ति के नाम से पड़ा , कथा किवदंती के अनुसार एक दिन बासुकी अपनी जानवरों को दारुक वन में चरा रहा था , एक गाय अपने थन से दूध को एक जगह गिरा रही थी। ऐसे ही वो गाय रोज थन का दुध दारुक वन के उसी स्थान पर रोज दुध गिरा देती बासुकी को जब यह पता चला की यह गाय दूध को इसी स्थान पर रोज गिरा देती है। तो उसे यह जानकार बहुत ताज्जुब हुआ। एक दिन बासुकी घर पर नींद में सो रहा था। तभी उसे शंकर जी सपने में आये और उससे कहा देखो बासुकी जहाँ गाय दुध गिराती है। उस स्थान पर में निवास करता हूँ। दूसरे दिन बासुकी दारुक वन में उसी पेड़ के निचे गया और पेड़ के पास खुदाई किया। उसने देखा की वहां एक शिव लिंग दफना हुआ है उसने उसी जगह पर शिव लिंग की स्थापना कर उसकी पूजा पाठ में लग गया उसी दिन से उस स्थान में लोग पूजा पाठ करने लगे और इस तरह यह स्थान काफी प्रकाश में आ गया। बासुकी नामक इस व्यक्ति के नाम से ही इस स्थान का नाम बासुकीनाथ धाम हो गया। और तब से इस स्थान पर यहाँ करोड़ो पर्यटक श्रावण मास में शिव जी को गंगा जल अर्पित करने के लिए आते रहते हैं।
बासुकीनाथ धाम से माँ गंगा घाट से काँवरिया अपने काँवर में गंगा जल भर कर एक सौ पांच किलोमीटर पैदल चलकर , बोलबम बोलबम बोलते हुए बासुकीनाथ जल को शिव को अर्पित करने के लिए आते हैं। हरेक श्रद्धालु किसी न किसी मनोकामना लिए शिव को गंगा जल अर्पित करने के लिए आते हैं।
श्रावण मॉस में करोड़ो श्रद्धालु देश के कोने कोने से बासुकीनाथ में जल चढाने के लिए आते रहते हैं।
बासुकीनाथ धाम से दुमका देवघर पथ में कई पर्यटक स्थल देखने को मिलेंगे। त्रिकुटी पर्वत पर्यटकों के लिए ख़ास पर्यटन गंतव्य हैं। पर्यटक त्रिकूट पर्वत में दृश्य का आनंद लेते हैं. आप वहां रोपवे का आनंद ले सकते हैं. त्रिकूट से आगे देवघर में शिव का प्राचीन मंदिर है। वहां भी सालों भर श्रद्धालु का ताँता लगा रहता हैं. देवघर में विश्वप्रसिद्ध श्रावण मेला लगता हैं. श्रावण मॉस में वहां भी श्रद्धालु काँवर लेके शिव को गंगा जल अर्पित करने के लिए आते रहते हैं।
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